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अन्ना हजारे बनाम बाबा रामदेव – Jagran Junction Forum
अन्ना की रणनीति या रामदेव की दुराग्रह नीति !!
प्रश्नः क्या बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की देश, काल और परिस्थिति
के बारे में अंदाजा लगा पाने की क्षमता में ज्यादा फर्क है?
उत्तरः सौ फीसदी सही।
प्रश्नःक्या बाबा रामदेव की सत्याग्रह आयोजित करने के पीछे की मंशा
राजनीतिक है?
उत्तरः अगर राजनीतिक ही है तो बुराई क्या है।
प्रश्नःक्या अन्ना हजारे अपनी नीयत और रणनीति को लेकर संदेह से
परे हैं?
उत्तरःनहीं।
प्रश्नःक्या बाबा रामदेव ने सत्याग्रह के मूल सिद्धांत पर कुठाराघात किया
है?
उत्तरः प्रमाणपत्र देना जल्दीबाजी हो सकती है।
पत्रकारिता और मीडिया के बीच के अन्तर को समझने की जरूरत है।
हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आजादी के पूर्व संपादकों को
काले पानी की सजा या जेल की कोठरी या ईमानदारी की सजा जान
देकर चुकानी पड़ती थी। वह पत्रकारिता थी अब तो हम मीडिया हो
गये हैं। समाचार के मामले में ईमानदारी के बजाय मध्यक्ष्यता की
भूमिका में खड़े हैं। पत्रकारिता मिशन थी, मीडिया व्यावसायिक है।
एक रात में पत्रकारिता का चेहरा मीडिया के रूप में पूरे देश के लोगों
ने (प्रिंट या इलेक्ट्रानिक) को देखा। आखिरकार यह क्या था।
हम राम देव को हीरो बनाये हुये थे और यूपीए की कथित संभावित
मनौती से पत्रकारिता का चेहरा ही बदल गया और राम देव को हीरो
के बजाय जीरो बनाने की कोशिश में मीडिया का रूप विलेन के रूप में
जनता ने देखा। विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे को दर- किनार कर
अनशन के तौर तरीकों, सरकार से अनुमति जैसे मुद्दों को बड़े जोर
शोर से उठाया जाने लगा। मीडिया के कुछ व कथित मालिकों ने
(रात में जान को जोखिम में डालकर पत्रकारों के एकत्रित किये
गये साक्ष्यों को दूसरे दिन तो भले दिखाया पर अगले ही दिन किसी
व्यावासायिक गुप्त समझौते) के तहत नौकरी कर रहे टेबुलों पर बैठे
मीडिया कर्मियों ने राम देव को हीरों के बजाय जीरो (विलेन) बनाने
में जुट गयी। नेट पर चल रहे ब्लाग में लोगों की विचारधाराओं को
मदद मिली है। राम देव और अन्ना हजारे में एक बड़ा अन्तर है।
राम देव खुद संस्था बनकर उभरे हैं, जबकि अन्ना हजारे के साथ
पूरी टीम काम कर रही है। स्वामी रामदेव भ्रष्टाचार से लड़ना प्रारंभ
किये हैं, वहीं अन्ना हजारे की टीम अपनी सेवा काल में लड़ चुकी है।
सरकार के कथित नुमाइन्दों के पैतरों को अन्ना टीम व्यावहारिक
तौर पर जानती और समझती है। कह सकते हैं कि एक नवेला एक
नाग पर भारी हो सकता है पर हजारों नागों पर एक नेवला बिना
जड़ी सूघें भारी नहीं पड़ सकता है। बाबा या अन्ना नेवला तो
भ्रष्टाचारी नागों से कम नहीं हैं। जय हो मुम्बई के जेडेकी,
जिनकी कमाई हम जैसे कथित मीडिया कर्मी खा रहे हैं।
कमाई खाने वालों से गोली खाने की उम्मीद बेइमानी होगी।
जय हिन्द…..फिर कभी…
– प्रमोद कुमार चौबे ओबरा सोनभद्र मो.09415362474
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