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अन्ना का आंदोलन – वास्तविकता या भ्रम ?
आदरणीय जंक्शन महोदय,
डरिये नहीं, खुलकर सच्चाई का बखान करिये।
सच्चाई बखान करने में आगे रहिये। शहादत से
खुद का नुकसान होता है पर समाज का भला होता
है। इसे हम, आप सभी समझते हैं।
1. क्या ये आंदोलन अन्ना हजारे के व्यक्तित्व के
करिश्मे के कारण एक विशाल जनांदोलन बन गया है?
उ.जी, हां। व्यक्तित्व का अभिप्राय ईमानदारी से लगाया
जाना चाहिए। जो भी ईमानदार है, उससे टकराना मूंह के
खाने के बराबर है। ईमानदार इँसान की जान ली जा
सकती है परन्तु उससे ईमानदारी नहीं छीनी जा सकती है।
2. क्या आज भारत एक परिपक्व और जागरुक लोकतंत्र
में तब्दील हो चुका है जिस कारण इस आंदोलन को भारी
जनसमर्थन मिल रहा है?
उ.जी, नहीं।भारत एक परिपक्व और जागरुक लोकतंत्र में तब्दील
हो चुका है। एकदम गलत है। लोकतंत्र परिपक्व और
जागरुक होता तो ईमानदार आदमी चुनाव में जीतता पर
व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं है। महंगाई से दबी
जनता भ्रष्टाचार को वजह मान रही है, जो सही भी है।
भ्रष्टाचार के चलते ही उग्रवाद या अन्य वादों ने जन्म लिया है…।
3. मांगें मनवाने के लिए अनशन और सत्याग्रह का
तरीका किस सीमा तक जायज है?
उ.अनशन और सत्याग्रह से आन्दोलनकारी का आत्म
शकि्त में इजाफा होता है। इसकी सीमा
निधारित करना न्याय संगत नहीं है।
4. क्या मजबूत लोकपाल वाकई संसदीय लोकतंत्र
की संप्रभुता का हनन करने वाला सिद्ध हो सकता है?
उ.सांच को आंच क्या, मजबूत लोक पाल से संसदीय
लोकतंत्र की संप्रभुता का हनन नहीं होगा। महाभियोग
जैसे नियम से लोकपाल पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
5. कहीं ये आंदोलन सरकार द्वारा अपने विरुद्ध लगाए जा
रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से जनता का ध्यान हटाने के
लिए एक प्रायोजित आंदोलन तो नहीं?
उ.आपके शक में कोई दम नहीं है। सरकार जनता का
प्रतिनिधित्व करती है और जहां की अधिकांश जनता
भ्रष्ट हो चुकी हो, उससे सरकार ऐसी उम्मीद नहीं करेगी…।
प्रमोद कुमार चौबे
ओबरा सोनभद्र
09415362474
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