Menu
blogid : 4473 postid : 35

गुरुओं का जो रोल कल था, वहीं आज है और कल भी रहेगा

urjadhani express
urjadhani express
  • 36 Posts
  • 285 Comments

शिक्षकों से जीवन मूल्यों की स्थापना के संदर्भ में आपके
विचार किसी भौतिक संसाधनों की जुगत में लगे शिक्षकों
के भावनाओं को उकेरने में सफळ हो रही हैं परन्तु हममें
यानी गुरुओं का जो रोल कल था, वहीं आज है और कल
भी रहेगा। गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है प्रकाश
की ओर ले जाना। गुरु को हमने शिक्षक बनाने की कोशिश
की या फिर अध्यापक, शिक्षा मित्र ।अब शिक्षा सहायक
बनाने में लगे हैं। इसके बाद हो सकता है कि और कुछ भी
बनाये। गुरु कल भी था और आज भी है और कल भी रहेगा।
सवाल उठ रहे हैं कि हमारी वैदिक ऋचाओं पर शोध पशि्चमी
देश कर रहे हैं। हमें अपने प्राचीन ग्रन्थों की सुध नहीं है।
यह हमारा भ्रम हो सकता है कि आजादी के समय
समसामियक जीवन मूल्य कुछ थे और अब कुछ हो गये हैं।
इँसान के जीवन से लेकर जीवन मूल्य वैसे ही हैं, जैसे सत्य
या शाश्वत या सनातन। देश को आजादी दिलाना देश या
राष्ट्र प्रेम हो सकता है परन्तु स्रषि्ट के अनुरूप मूल्यों के संग
चलकर श्रेठता को कायम रखना हमारी वशुधैव कुटुम्बकम्
की संस्कृति ही स्तुत्य है। मानवीय जीवन मूल्य महात्मा
गांधी में थे, आजादी का जीवन मूल्य चंद्रशेखऱ आजाद या
भगत सिंह में था। मानव में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का जीवन
मूल्य मदन मोहन मालवीय में था। देश और किसी सीमाओं
से बांधकर देखेंगे तो वे जवाहर लाल नेहरू हो सकते हैं या
मो. अली जिन्ना हो सकते हैं। इनके जीवन मूल्य अन्य
महात्माओं से काफी कम हो सकते हैं। आजादी के बाद देश
की बागडौर संभालने वाले लोग चाहे वे कोई प्रधानमंत्री हों
या कोई राष्ट्रपति। उन्होंने अपने कर्म के बदले परिणाम की
इच्छा थी। उनके जीवन मूल्य राम मनोहर लोहिया के नहीं
हो सकते या (अभी जीवित) अन्ना हजारे के नहीं होने चाहिए।
गुरूओं के जीवन मूल्य अब भी वहीं हैं, जिसमें इँसान के जीवन
लक्ष्य मोक्ष(जीवन-मरण के बंधन से मुकि्त) के रास्ते पर ले
जाना है। गुरु विद्या दान करता था और अब गुरू के भेष में
शिक्षक से शिक्षा लेते हैं। ऐसी सि्थित में हमें धूर्तता
(अत्यधिक लाभ कमाने) से अधिक कुछ नहीं मिल सकता है।
ऐसी शिक्षा से बाप-बेटे, पति-पत्नी, बेटे-मां, भाई-बहन आदि से
नहीं बनेंगे पूरी पृथ्वी संग प्रेम की बात बेमानी होगी। वास्तविक
शिक्षक और बहुरुपिये शिक्षकों में अन्तर समझने की परख
हमारे कर्मों की वजह से कम होती जा रही है…आपकी
शिक्षकों के प्रति सद्भभावना को सलाम करता हूं… शेष फिर कभी।
प्रमोद चौबे
09415362474

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh