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औरत मां है, बहन है, बेटी है, सब कुछ है। संसार में मां न होती
तो हम न होते। इसका अहसास सभी को है। जिसे अहसास नहीं
है, वह जिन्दा रहते हुए भी मृतक समान है। मां बेटे के भलाई के
लिए न जाने क्या- क्या की परन्तु जैसे ही बेटा बड़ा होता है तो
बात-बात में कह देता है कि मां तू नहीं समझ रही है। जब बेटा
अबोध था तो उसकी हर जरूरतों को बिना बताये ही मां समझ
लेती थी और जब बड़ा हो गया तो मां को कहता है कि तू नहीं
समझ रही है। मां पहले भी समझती थी, मां अब भी समझती है
और मां बाद में समझती रहेगी। मां का संसार में कोई विकल्प
नहीं है। औरत की पीड़ा औरत ही समझती है। अब भी अधिकांश
पुरूष औरत की पीड़ा से वंचित हैं। बचपन में पिता, सयानी होने
पर भाई, विवाहित होने पर पति और बूढ़ी होने पर बेटे के दबाव
में जीवन यापन करती है। इस सच को हमें कबूल करना चाहिए।
आखिर मां को मां महसूस करने में हमें गुरेज क्यों है। हम अपनी
मां को मां नहीं समझेंगे तो निश्चित तौर पर मेरा बेटा भी मुझे मां
या पिता न समझे तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। औरत क्या हैं ?
तप…त्याग…या तपस्वनी.. से अधिक मां है। मां का प्यार
अथाह समुद्र से भी गहरा है। पृथ्वी पर प्रत्यक्ष में कोई भगवान
या देवता है तो वह मां है।
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