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घर में एक बार एक सांप घुसा। लोगों को सूचना मिली तो लाठी-ठण्डा लेकर उसे मारने के लिए लोग दौ़ड़ पड़े। सांप की जान जाते देख मुझ जैसा इंसान परेशान हो उठा। लोगों से मैंने आग्रह पूर्वक पूछा कि आप इसे मारने के लिए क्यों आयें हैं तो लोगों ने कहा कि सांप आपके घर में घुसा है। इसे यहां रहने का हक नहीं है। लोगों से मेरा सवाल था कि पहले आप तय करें कि घर मेरा है या सांप का। पहले तो नदी-नाले, जंगल-पहाड़ ही तो थे। जहां पर सांप संग अन्य जंगली जीव जन्तु रहा करते थे। हमने उस जिस घर में पहले जीव-जंतु(सर्प) आदि रहते थे उस स्थान पर कब्जा कर लिया और उनके घर को अपना घर बताने लगे। कभी- कभी तो उन्हें अपने घरों को देख लेने दिया जाय। फिर क्या था लोग बुदबुदाते हुए वापस चले गये और थोड़ी देर में सांप भी खुद ब खुद चला गया। नियति को शायद यहीं मंजूर था। सांप से कहीं अधिक जहरीले इंसान के नाम पर शैतान का आखिर तो कोई इलाज हो।
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