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प्रधानमंत्री के पद की दावेदारी विषय पर समान सवालों का जवाब
कांग्रेस और भाजपा से पूछकर जागरण ने अपने दायित्व का
बखूबी निर्वाह किया है। इसे आगे भी जारी रखने की जरूरत है।
हमें इस बात का अफसोस है कि देश में कांग्रेस पार्टी से बना कोई
भूतपूर्व प्रधानमंत्री सक्रिय नहीं है, वहीं भाजपा से बने प्रधानमंत्री
अटल बिहारी बाजपेई जी का कोई साक्षात्कार या हाल, समाचार
अखबारों में पढ़ने को नहीं मिलता है। इसकी खबर भी समाचार
पत्रों में दें तो पाठकों को अच्छा लगेगा। आगामी चुनाव में देश की
जनता तय करेगी कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा।
अफसोस है कि कांग्रेस के कार्यो से नहीं लगता कि पुनः सरकार
आसानी से बनेगी, वहीं भाजपा में प्रधानमंत्री की कुर्सी की दौड़ में
अभी से घमासान जारी हो गया है। कांग्रेस में राजतंत्र से लोकतंत्र तो
वहीं भाजपा में लोकतंत्र से राजतंत्र जैसे स्थिति दिख रही है।
देश की जनता बार-बार चुनाव पसंद नहीं करती है। महंगाई,
भ्रष्टाचार,आतंकवाद, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से देश जूझ
रहा है। जनता बदलाव चाहती है परन्तु योग्यता के पैमाने पर
राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को नजर अंदाज नहीं कर पाती है। कांग्रेस में
प्रधानमंत्री के तौर पर राहुल पर मुहर लगती नजर आ रही है, वहीं
भाजपा में एलके आडवानी को नकारने की मुहिम चल रही है।
चुनाव के अंतिम क्षणों में प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए भाजपा में
घमासान और सहयोगी दलों से सहमति मुश्किल काम होगा।
कांग्रेस में शहादत देनेवाले गांधी परिवार की जय बोलने की कांग्रेस
नेताओं में परम्परा सी है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री की कुर्सी को
लेकर प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस में टूटन भी हो सकती है
पर कांग्रेस में अन्दर ही अन्दर प्रधान मंत्री की कुर्सी की चाह रखने
वालों को विपक्ष की एकजुटता का अभाव उनका लार टपकाने में
सफल होती नजर नहीं आ रही है। अभी बहुत कुछ कहना जल्दीबाजी
हो सकती है। अभी राजनीति रूपी तेल को देखिये और उसकी धार को देखिये।
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