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आदरणीय श्री अशोक जी, सादर प्रणाम

urjadhani express
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आदरणीय श्री अशोक जी,
सादर प्रणाम
आप सारा अंदाजा आसानी से लगा ही लेंगे….. आपका कथन मुझे लक्षणों के
आधार पर अनुमान लगाने के लिए बाध्य कर रहा है परन्तु इलाज बिना
परीक्षण (जांच रिपोर्ट) के सटीक नहीं किया जा सकता है। ईश्वर न करे, आपको
नजर लगे पर इतना बता दूं कि आपके माध्यम से ईश्वर कुछ बड़ा कार्य कराना
चाह रहा है। इसका विरोध आपको अपने आस-पास के लोगों से उठानापड़ेगा।
विचलित नहीं होंगे। समय का ख्याल रखेंगे। बिना बताये तो आप वैसे भी नहीं
जाते परन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से पूर्व तय कर लें कि वहां जाना
आवश्यक और सुरक्षित हैं तभी जायें। समाज का कार्य और अपनी सुरक्षा दोनों
आपको खुद करनी है। इसमें ईश्वर आपकी पूरी मदद करेगा। ईश्वर से हम कामना
करते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कुछ ऐसा हो कि जिसमें आप देश (राष्ट्रीय स्तर) के
क्षितिज पर चमकेते सितारे हों और आप सूचित करें तो मेरे जैसा तुक्ष्य इंसान
प्रफूल्लित हो।  सुरक्षित शब्द को एक बार फिर से दुहरा रहा हूं। वर्दी से कत्तई सुरक्षा
की उम्मीद मत करियेगा। आपके अपने इस महकमे में होंगे तो संभव हो कि हमारी
इन बातों से आपको दुखः पहुंचे। मेरा खुद का मानना है कि किसी इंसान को
विशेषकर पुलिस की वर्दी नसीब होती है तो मजह एक जन्म के कुकर्मों का ही
योगदान नहीं होता है। कई जन्मों के कुर्कमों के फलित होने पर किसी इंसान
को पुलिस की वर्दी नसीब होती है ताकि उसकी पीढ़ी पूरी तरह से बर्बाद हो जाय।
कुछ इसके अपवाद होते हैं। अन्य किसी को मेरी बातों को बुरा लगेगा को उसके
लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं….
जिसने मुझे बनाया, उसकी कृपा होगी तो निश्चत तौर आपके बताये गये स्थलों की
मिट्टी को माथे लगाउंगा। जिस धरती(मां) पर आपने जन्म लिया है। उसे पूरे संसार
में स्तुत्य होना चाहिए या नहीं है तो स्तुत्य होगा। मुझे पूरा विश्वास है। उसी मिट्टी
से आपने जन्म लिया है। कुछ घटनाएं मुझे याद आ रही है। जिनका उल्लेख करना
वाजिब समझता हूं…..  श्री अशोक जी आपके द्वारा उठाई गयी समस्या कोई एक
दिन नहीं है। इसलिए ऐसी समस्या का समाधान एक दिन में होने वाला
नहीं है और न ही आप ऐसी उम्मीद करियेगा। अनुमान लगाने के लिए आपने
कहा तो मुझे लगता है कि जैसे इंसान को ठण्डक लगे और बुखार आये तो मलेरिया
की उम्मीद हो सकती है। कुछ अन्तराल पर बुखार भी आये तो टाइफाइड हो सकता
है। वैसे ही आप द्वारा उठायी सामाजिक समस्या पर मुझे लगता कि इसके पीछे धर्म के
नाम पर अधर्म और भूख के नाम पर गरीबी होगी। अनुमान गलत होने पर माफ करेंगे।
युद्ध तो महज अमीरी और गरीबी के बीच है। कानून इस तरह की समस्या पर शत-प्रतिशत
रोक लगाने में सफल नहीं हो सकता है। इंसान को मलेरिया से बचने के लिए नियमित
गुरूच का इस्तेमाल करना होगा। मलेरिया नहीं होगा, जिन्हें मलेरिया हुआ है। उनके खून
की जांच कराकर मलेरिया के रोकथाम के लिए बनी विविध दवाओं को लेना होगा, तभी
जान बचाई जा सकती है। सामाजिक बीमारी का निदान प्राथमिक तौर पर जांच और
निदान है, वहीं नियमित उपाय गुरूच जैसी लता से कर सकते हैं। गुरूच वेद में वर्णित
सोम के परिवार से है। हमारे प्रदेश उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के दक्षिणी छोर
पर मां जिरही देवी का स्थान है, जहां पर प्रायः हर रोज बकरों आदि की बलि दी
जाती है। संयोग से गरीबों को ख्याल में रखकर ऐसे स्वाभाविक तौर पर शक्तिपीठ
तक पहुंचा तो वहां का दृश्य देख चकित रह गया। लोगों ने बताया कि जुगैल गांव
में कोई भी शादी-विवाह के बाद बलि की प्रथा अनिवार्य है, जो ऐसा नहीं करता है,
उसे नुकसान उठाना पड़ता है। तथाकथित नेता भी अपनी जीत की खुशी में(सांसद
व विधायक) तक बकरे की बलि देने जाते हैं। बलि की प्रथा को धर्म के नाम पर
अधर्म से जोड़कर किये जाने से न जाने कितने निरपराध जीवों की जाने गयी।
मैंने इस घटना पर विचार कर विषद से अखबार में खबर दी और छपी भी।
बस इतना था कि मां जिरही की इसके पहले मैंने आराधना की और कदम बढ़ा
लिया। फिलहाल अभी तक मां की कृपा से ठीक हूं। सरकार, प्रशासन की अनदेखी
पर बलि की प्रथा आज भी चल रही है। कानूनन अपराध है। हमें इसकी जानकारी है।
आप द्वारा उठाई गयी सामाजिक समस्या का निदान कुछ ऐसा हो कि समाज में
ऐसे नये लोग प्रवेश न करें और जो पहले से प्रवेश कर चुके हैं या प्रवेश कराने वाले हैं।
वे खुद अफसोस में हों। जिन उम्रों में देवी स्वरूपा कन्याओं की आराधना कर व्यक्ति
मुक्ति पा सकता है। इस उम्र में उन्हें ऐसे कार्यो में भेजने वाले मां बाप महापापी हैं।
पूर्वजों की इन बातों को उनके बीच फैलाये जाने की जरूरत है। मुझे तो नहीं लगता कि
ऐसे मां-बाप वास्तव में जिन्दा हैं, जिन्होंने ऐसे जघन्य पाप किये हैं। जरूर ही ऐसे
कर्म करने वाले लोग धर्म या गरीबी को ढाल बनाये होंगे। मेरी ऊपर कृपा करके
ऐसे कर्म के मूल में धर्म या गरीबी का सहारा लिया गया है। इसका उल्लेख करने
का कष्ट करेंगे। ऐसे मामलों में वासना तो महज किताबों में पढ़ने की बात लगती है
या विश्वविद्यालयों के सेमिनारों में बोलकर ताली बजवाने का काम कर सकती है।
बीमारी का वास्तविक पता लग जात तो निश्चत ही उपचार हो जाता है। कैंसर होगा
तो काटना होगा या एड्स होगा तो समाज को सावधान करना होगा। अन्य ईलाज
योग्य बीमारी होगी तो उपचार होगा। धर्म के साथ एक-एक कदम आगे बढ़ाये जाने
की जरूरत है। धर्म की विजय होगी और अधर्म का नाश होगा….हर कदम पर साथ..

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