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“Jagran Junction Forum”अन्ना का कांग्रेस पर वार – सिद्धांत की लड़ाई या सियासी दांवपेंच

urjadhani express
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हमें हर काम में शक की बीमारी है। सिद्धान्त की लड़ाई लड़ने वाले अन्ना जी के पीछे पड़ने से कुछ मिलने वाला नहीं है। राष्ट्रपति का ख्वाब कांग्रेस वाले दिखाने गये थे। अन्ना जी कांग्रेस के चौखट पर मत्था टेकने नहीं गये थे। सिद्धान्त की लड़ाई को सियासी रंग देने की कोशिश कोई नई नहीं है। सियासी दांवपेंच को आखिर गलत ही क्यों मान लिया जाता है? ऐसा लगता है जैसे राजनीति कोई अच्छा काम नहीं है बल्कि बुरा काम है। अन्ना जी को ललकारा जाता है कि आप चुनाव लड़कर देखिये। आखिर क्यों चुनाव लड़ने की चुनौती दी जाती है? गांधी जी का लक्ष्य देश की कुर्सी हथियाने की थी या अन्ना जी का कोई लक्ष्य कुर्सी का है। कथित नेताओं की बेशर्म हरकतों से देश कई बार शर्मसार हो चुका है। बेलगाम नेताओं की प्रतिक्रिया हम किसी से छिपी नहीं है। हम कोई अन्ना को कोई प्रमाण पत्र देनेवाले नहीं है। सवाल यह उठना कि क्या अन्ना का कांग्रेस विरोधी वक्तव्य राजनीति से प्रेरित है? ठीक है लोगों ने माना है कि राजनीति वैश्या है पर क्या इसे महज वैश्या मानकर छोड़ देना देश हित में है? अगर राजनीति प्रेरित भी है तो भ्रष्टाचार का खात्मा करने का उद्देश्य वाजिब नहीं है? क्या अन्ना मूल मकसद से हटकर एक अनावश्यक विवाद पैदा कर रहे हैं? देश काल समाज की जब भी बातें होंगी तो अन्य बातें भी उठेंगी। संघीय ढा़चे में आईएएस जैसी एक बड़ी फौज है। उसके द्वारा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की निर्णायक कोशिश नहीं हो रही है। अन्ना की टीम में निश्चत तौर पर संघीय ढा़चे में कार्यरत आईएएस जैसे अधिकारियों के आदर्श हैं। एकले चना भाड़ फोड़ने वाला नहीं है। स्वामी रामदेव इसके शिकार हो चुके हैं। टीम है तो संघर्ष कर रही है। भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन चलाने वालों की जांच कराने में वर्तमान केंद्र सरकार पीछे नहीं है।
क्या कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के लिए अन्ना का यह कदम सबक देने जैसा है? निश्चत तौर पर सभी राजनीतिक दलों के लिए सबक देने वाला है। इसमें संदेह नहीं है।
क्या अन्ना को सशक्त जनलोकपाल के लिए कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार पर भरोसा करके चलना चाहिए? भरोसा होता तो दिल्ली के आन्दोलन के पूर्व अन्ना जी को तिहाड़ भेजने की जरूरत क्या थी? तिहाड़ से बाहर भ्रष्टाचार में कथित तौर पर डूबी हुकूमत ने जनता की भावनाओं के दबाव में किया। यहा कहना समीचीन होगा कि अन्ना जी का जीवन भी खतरे में है। हड़बड़ा कर इनकी गांधी जी जैसी हत्या भी हो सकती है या इनकी मौत से जिन्हें फायदा हो सकता है, वे भी ऐसे कदम उठा सकते हैं।

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