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आजादी के मायने मनमानी नहीं

urjadhani express
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“Jagran Junction Forum”“अभिव्यक्ति की आजादी” आजादी के मायने मनमानी से नहीं लगाये जा सकते। इस तरह से स्वतंत्रता का अर्थ बंधनों का अभाव नहीं है। भारत भूमि पर भोग नहीं संयम को महत्व है। शब्दों के सही मायने लगाने के ख्याल से वाकिफ महात्मा बुद्ध अपने उपदेशों को शिष्यों को लिखने की (पाली भाषा) मनाही करते थे। उग्र राष्ट्रता अन्तर्राष्ट्रीयता में बाधक है। हमने अपने को संकीर्ण दायरे से बांध रखा है। प्रशांत भूषण की वाणी (उचित या अनुचित) के पचड़े में देश के लोग पड़ चुके हैं। इस पर कुछ कहना कुछ या बहुत से लोगों को पीड़ा पहुंचाना होगा। प्रशांत भूषण की बातों से ज्यादा जरूरी है कि हम भारतीय संविधान के अनुच्छेदः370पर कैसी राय रखते हैं ? कोई कह दे तो पीड़ा होती है। उसके पीछे के उत्पन्न तथ्यों को समझने की कोशिश करनी होगी। भारतीय संविधान के अनुच्छेदः19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विवेचन है। आकाशवाणी,दूरदर्शन, समाचार पत्र, भाषण, विचार आदि की स्वतंत्रता मिली है। अभिव्यक्ति के मामले में संसार में सबसे बड़े लोकतांत्रिक भारत देश की स्थिति अन्य देशों से बेहतर है।इसमें कोई शक नहीं है। जम्मू-कश्मीर की कृत्रिम समस्या का समाधान उसके लटकाये रखने की प्रवृत्ति से आगे बढ़ने की जरूरत है। हमारी मर्जी है कि देश में जब चाहे नये प्रदेश बना दें या नये जिले बना दें। क्या कोई किसी से वाजिब राह लेता है ? दुर्भाग्य है कि हमें बंटने में जितना मजा आता है, एक रहने में नहीं। तभी तो १५ अगस्त १९४७ की राजनीतिक आजादी के बाद २०११ तक आर्थिक आजादी को पाने में सफल नहीं हो सके। आजादी और अभिव्यक्ति एक सिक्के के दो पहलू हैं। गरीबी को हम नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद आदि जैसे का नाम देते हैं। किसी इंसान का पेट भरा होगा तो मुश्किल है कि वह ऐसे नामों से पहचान बनाने की कोशिश करे। देश में गरीबों को दवा की गोली देने में असफल रहे/ हम लोगों को बंदूक की गोली देने में जुटे हैं। हमारी संस्कृति, परम्परा,व्यवस्था में प्रतिशोध नहीं क्षमा को महत्त्व दिया गया है। अभिव्यक्ति की आजादी के मायने में राष्ट्रवाद की शिक्षा ग्रेट बिट्रेन के बीबीसी से लेने की जरूरत है। वह भी बंधा है।हम किसी स्त्री को देवी कहकर पुकार सकते हैं परन्तु उसे मां, बहन, बेटी, भतीजी, पत्नी आदि संबोधन करने से पूर्व विचार करना होगा। अभिव्यक्ति के मामले में ऐसा ही है। इनका ख्याल नहीं रखने पर अनचाही हिंसा के शिकार होने पर बहस का हिस्सा बन सकते हैं, जिसे कोई व्यक्ति या संस्था उचित नहीं ठहरायेगी।

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