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मनमोहन की मोहनी बातों का कोई जवाब नहीं. जनाब..कुपोषण को उन्होंने राष्ट्रीय शर्म ही करार दिया..भइया अब आप घबड़ाइगा नहीं, जब देश के मुखिया मनमोहन जी भ्रष्ट्राचार को राष्ट्रीय शर्म करार दें या काला धन को भी राष्ट्रीय शर्म के दायरे में ला दें। हम तो कहते हैं कि भइया देश की जितनी भी समस्याए हैं, उन्हें धीरे-धीरे करके राष्ट्रीय शर्म करार दिया जाना चाहिए। देश की आबादी बढ़ी है। इसे तो बहुत पहले ही राष्ट्रीय शर्म घोषित कर दिया जाना चाहिए था। भूख से मरने को भी राष्ट्रीय शर्म घोषित कर दिया जाता तो मुझे लगता है कि गरीबों से निजात मिल जाता। भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय शर्म घोषित कर अन्ना टीम को आसानी से पटखनी दे सकते हैं। कालाधन को राष्ट्रीय शर्म घोषित कर स्वामी रामदेव को पटखनी देने में सफल हो सकते हैं। एक बार मुझसे किसी ने कहा कि देश के नेताओं को(प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नहीं) शर्म नहीं आती। हमने कहा कि भला उन्हें शर्म क्यों आयेगी..शर्म की बात भी होगी तो उसमें वे आप से कहेंगे शर्म कर लीजिए। वाह जनाब..हमें आपकों देश के नेता का सम्मान तो करना चाहिए न..नेता भी क्यों न कहें..आपका नेता है तो शर्म कौन करेगा…लडि़ये नहीं…आप कहेंगे कि नेता क्यों नहीं शर्म करता…भाई साहब.शर्म तो वह करेगा,जिसे शर्म आयेगी..जहां से बेशर्म भी शरमा कर चली जाय..वहां पर शर्म आखिर क्या करेगा…राष्ट्र को महज देश में देखना हमें लगता है कि राष्ट्र के साथ धोखा है..हमारी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार आदि पूरे विश्व में जहां कहीं भी है।वहां- वहां राष्ट्र है। राष्ट्रीय शर्म कहके हमें भी अपने दायित्व से मुक्ति ले लेनी चाहिए। मनमोहन जी की बातों का सम्मान रखना है तो जय हो राष्ट्रीय शर्म की…
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